अपनों ने साथ छोड़ा तो पेंशन बनी सहारा (सफलता की कहानी)
दतिया / जिस देश में बुजुर्गों के आशीर्वाद से ही हर काम की शुरूआत की परंपरा रही हो, अब वहां बुढ़ापा उपेक्षा बन गया है। आराम की जिंदगी गुजारने वाले उनके अपने बुढ़ापे में बुजुर्गों का साथ छोड़ देते हैं। जिले के ग्राम अकोला के रहने वाले 71 वर्षीया बुजुर्ग श्री करोड़ी रामपाल आज बुढ़ापे में किसी के मोहताज नहीं हैं। करोड़ी रामपाल के बुढ़ापे का एक मात्र सहारा सरकार की ओर से मिलने वाली वृद्धावस्था पेंशन बनी हुई है। इस पेंशन के जरिए उनकी गुजर-बसर अच्छी तरह चल रही है।
करोड़ी रामपाल की पांच संताने हैं, जो उनसे अलग रहती हैं। उनका बी.पी.एल.कार्ड बना हुआ है, जिससे नियमित रूप से हर माह उन्हें गेहू, चावल मिलता है। उनका जीवन आराम से बीत रहा है। इतनी वृद्धावस्था में भी करोड़ी रामपाल आज किसी के मोहताज नहीं हैं।